Patna: बक्सर का नाम सुनते ही लोगों के मन में ऐतिहासिक शहर की छवि उभरती है. चाहे वह भगवान श्रीराम की यात्रा, राक्षसी ताड़का का वध हो या बक्सर की 1764 की लड़ाई. इसी कड़ी में सैकड़ों सालों से बक्सर में पंचकोशी मेला लगता है. इस मेले में पांच दिन अलग-अलग गांवों की यात्रा होती है. अलग-अलग जगहों पर हर दिन परंपरा के अनुसार अलग-अलग किस्म का खाना खाया जाता है. बिहार के साथ यूपी और पूरे देश से साधू-संत और लोग इस यात्रा में शामिल होते है. कोरोना संकट के इस साल में आज से बक्सर पंचकोशी मेला शुरू हुई. पंचकोश महोत्सव के अंतिम दिन विश्व प्रसिद्ध लिट्टी-चोखा महोत्सव का आयोजन इस साल 09 दिसम्बर को होगा. यह परंपरा त्रेता युग से चली आ रही है. इसी का निर्वहन करते हुए आज से पंचकोशी यात्रा शुरू हो गई. इस यात्रा के दौरान अहिरौली, नदांव, भभुवर, बड़का नुआंव तथा अंतिम पड़ाव के दिन नौ तारीख को चरित्रवन में लिट्टी-चोखा का प्रसाद ग्रहण कर पूरा करेंगे. हालांकि कोरोना संक्रमण को लेकर कल्पवास की व्यवस्था इस बार नहीं रहेगी.

पहली यात्रा: पंचकोशी यात्रा के पहले दिन सुबह रामरेखा घाट पर स्नान करके पहले पड़ाव स्थल अहिरौली पहुंचने के बाद लोग वहां अहिल्या के आश्रम में लोगों ने जलाभिषेक कर उनका दर्शन किया. मान्यताओं के अनुसार भक्तों ने श्रद्धा के साथ पुआ-पूड़ी के अलावे पकौड़ा खाया और एक दूसरे को प्रसाद के रूप में ग्रहण कराए.

दूसरी यात्रा: पंचकोश मेले का दूसरा पड़ाव नदांव में होता है. जहां कभी नारद मुनी का आश्रम हुआ करता था. आज भी इस गांव में नर्वदेश्वर महादेव का मंदिर और नारद सरोवर है. यहां आने वाले श्रद्धालु खिचड़ी चोखा बनाकर खाते हैं. ऐसा माना ताजा है कि नारद आश्रम में भगवान राम और लक्ष्मण जी का स्वागत यहां खिचड़ी चोखा से किया गया था

तीसरी यात्रा: श्रद्धालुओं भभुअर गांव में भार्गव ऋषि के आश्रम पर स्थित भार्गेश्वर महादेव की पूजा अर्चना करते है. यहां पर खाने में यहां पर चूड़ा दही खाया जाता है और लोगों को प्रसाद स्वरुप इसको दिया जाता हैं.

चौथी यात्रा: नुआंव गांव में चौथा यात्रा होता है. यहा पर लोग उद्वालक ऋषि के आश्रम पर लोग अन्य पकवान के साथ सत्तु और मुल्ली का सेवन करते है.

पांचवी यात्रा: पंचकोश मेले का समापन चरित्रवन में होता है, जहां विश्वामित्र मुनी के आश्रम में लोग लिट्टी चोखा बनाकर खाते हैं. बक्सर के किले मैदान में हजारों लोग एक साथ गोइठा पर लिट्‌टी चोखा बनाकर एक साथ खाते है.

मेले को भगवान श्रीराम की यात्रा से जोड़ा जाता है

कहा जाता है कि मेला त्रेतायुग से तब प्रारंभ हुआ जब महर्षि विश्वामित्र अयोध्या से श्री राम और लक्ष्मण जी को लाए और उनके द्वारा इस बक्सर जिले को ताड़का राक्षसी व मारीच, सुबाहु के आतंक से सिद्धाश्रम को मुक्त कराया. इसी दौरान भगवान श्रीराम और लक्ष्मण ने साधु संतों के मंडली के साथ परिक्रमा किए. इस दौरान भक्तों ने पकवान वगैरह से उनका स्वागत किया था.

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