भागलपुर, बिहार। स्वास्तिक के चिह्न की उत्पत्ति आर्यों द्वारा मानी जाती है तथा धार्मिक के साथ स्वास्तिक का वास्तु में भी विशेष महत्व माना जाता है।
इस सम्बन्ध में अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त ज्योतिष योग शोध केन्द्र, बिहार के संस्थापक दैवज्ञ पं. आर. के. चौधरी उर्फ बाबा-भागलपुर, भविष्यवेत्ता एवं हस्तरेखा विशेषज्ञ ने सुगमतापूर्वक बतलाया कि:- स्वास्तिक अत्यन्त प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति में मंगल का प्रतीक माना जाता रहा है।
किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले स्वस्तिक चिह्न अंकित करके उसका पूजन किया जाता है। स्वस्तिक शब्द सु + अस + क से बना है। सु का अर्थ अच्छा, अस का अर्थ सत्ता या अस्तित्व और क का अर्थ कर्त्ता या करने वाले से है। इस प्रकार स्वस्तिक शब्द का अर्थ हुआ अच्छा या मंगल करने वाला। स्वास्तिक को गणेश जी का प्रतीक माना जाता है।
वास्तु शास्त्र में मुख्य द्वार की दोनों ओर की दीवारों पर स्वास्ति चिह्न बनाने के बारे में उल्लेख है। इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
अगर आपके द्वार में कोई वास्तु दोष है तो उसके बुरे प्रभावो से भी राहत मिलती है। घर में समृद्धि आती है।
वास्तु शास्त्र में मुख्य द्वार की दोनों ओर की दीवारों पर स्वास्ति चिह्न बनाने के बारे में उल्लेख है। इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। अगर आपके द्वार में कोई वास्तु दोष से तो उसके बुरे प्रभावो से भी राहत मिलती है। घर में समृद्धि आती है।
वास्तु शास्त्र के मुताबिक, आंगन के बीचो-बीच मांडने के रूप में स्वस्तिक बनाना भी शुभ रहता है। पितृपक्ष में घर के आंगन में गोबर से स्वास्तिक बनाने से पितरों की कृपा प्राप्त होती है, जिससे घर में सुख-शांति बनी रहती है।
मंदिर में स्वास्तिक का चिह्न बनाकर उसके ऊपर देवताओं का मूर्ति स्थापित करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है। ऐसा हमें अपने घर पर भी पूजा-आराधना करते समय करना चाहिए।
तिजोरी में स्वास्तिक का चिह्न बनाने से समृद्धि बनी रहती है। माँ लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं, जिससे घर में किसी प्रकार से धन की कमी नहीं रहती है।
प्रतिदिन प्रातः जल्दी उठकर घर की साफ-सफाई करने के पश्चात धूप-दीप दिखाकर भगवान की पूजा-अर्चना करना चाहिए तत्पश्चात देहली की पूजा करते समय दोनों ओर स्वास्तिक का चिह्न बनाएँ, स्वास्तिक के ऊपर चावल की ढेरी रखें। इससे घर में माँ लक्ष्मी वास करती है।