भागलपुर, बिहार। 07 दिसम्बर, सोमवार को कालभैरव अष्टमी का पर्व मनाया जाएगा। पुराणों के अनुसार भगवान शिव के कालभैरव स्वरूप की उत्पत्ति मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को हुई थी।
इस सम्बन्ध में अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त ज्योतिष योग शोध केन्द्र, बिहार के संस्थापक दैवज्ञ पं. आर. के. चौधरी उर्फ बाबा-भागलपुर, भविष्यवेत्ता एवं हस्तरेखा विशेषज्ञ ने सुगमतापूर्वक बतलाया कि:- 07 दिसम्बर, सोमवार को श्रद्धालु/भक्तजन काल भैरव देव की पूजा-अर्चना करके त्योहार के रूप में मनाएंगे वही तात्रिकों अपने अराध्य देव काल भैरव को साधना से प्रसन्न कर मनोवांछित सिद्धि प्राप्ति हेतु पर्यन्त करेंगे।
इसलिए इसे काल भैरव अष्टमी पर्व और तांत्रिकों का महापर्व के नाम से जाना जाता है। ऐसी मान्यता है इस दिन काल भैरव की पूजा करने से सभी संकटों से मुक्ति मिल जाती है। देश के प्रायः सभी क्षेत्रों में श्रीभैरव की पूजा होती है। भैरव, देवी तीर्थ में हैं तो शिवधाम में भी हैं। भैरव बड़े-बड़े महलों में, चौक-चौराहे व नगर के प्रवेश द्वार पर विराजमान हैं।
भारत में कई स्थानों पर प्रसिद्ध कालभैरव मंदिर है।
पौराणिक कथानुसार:- काल भैरव शिव के क्रोध के कारण उत्पन्न हुए थे। एक बार ब्रह्मा, विष्णु और महेश में इस बात को लेकर काफी वाद-विवाद हो गई कि उन तीनों में कौन सर्वश्रेष्ठ है। तब बातों ही बातों में ब्रह्मा जी ने भगवान शिव की निंदा की तो इससे शिव शंकर क्रोधित हो गए और उनके रौद्र रूप के चलते काल भैरव की उत्पत्ति हुई।
काल भैरव भगवान शिव के स्वरूप माने जाते हैं। ऐसे में जब ब्रह्मा जी ने शिव जी की निंदा की थी काल भैरव ने वहीं सिर काट दिया था, लेकिन इससे उन्हें ब्रह्म हत्या का पाप लग गया जिससे बचने के लिए भगवान शिव ने एक उपाय सुझाया।
उन्होंने काल भैरव को पृथ्वी लोक पर भेजा और कहा कि जहाँ भी यह सिर स्वत: हाथ से गिर जाएगा वहीं उन पर चढ़ा यह पाप मिट जाएगा। जहाँ वो सिर हाथ से गिरा था वो जगह काशी थी जो शिव की स्थली मानी जाती है।
यही कारण है कि आज भी काशी जाने वाला हर श्रद्धालु, भक्तजन और पर्यटक काशी विश्वनाथ के साथ-साथ काल भैरव के दर्शन भी अवश्य रूप से करते हैं और उनका आशीर्वाद मिलता है।
काल भैरव मंत्र:- ऊँ हं षं नं गं कं सं खं महाकाल भैरवाय नम:।।