DESK:- मित्र ! धारणा और ध्यान में बहुत अंतर है । धारणा मनोनित है । धारणा का अर्थ है किसी कल्पना को चित्त में स्थापित करना जबकि ध्यान एक जैविक किरण है जो विषय पर केंद्रित होने से उस विषय का बोध होता है । ध्यान स्वत: स्फूर्ति किरण है जो चैतन्य होने पर क्रियाशील हो जाता है । ध्यान न हो तो पास में पड़ी वस्तु का कुछ पता नहीं चलता । ध्यान जिस विषय पर केंद्रित होगा हम उसी विषय को जान पाएंगे । धारणा का उद्देश्य ध्यान को केन्द्रित करना है । ध्यान केंद्रित और धारणा तिरोहित हो जाय तो जो स्थिति बनती है उसे समाधि कहते हैं । समाधि यानी विषय मुक्त ध्यान । ध्यान जब विषय मुक्त हो जाता है तो उसकी दिशा बदल जाती है । वह बहिर्मुखी से अंतर्मुखी हो जाता है । दिशा बदल जाने के कारण ध्यान उन विषयों का बोध कराता है जो अलौकिक हैं । अर्थात जो अलौकिक शक्तियां जीवन को चला रही हैं ध्यान उसका बोध कराता है । यानी जीव, माया, ब्रह्म का ज्ञान कराता है । यह तो रही ज्ञान की बात । इससे चेतना पर क्या फर्क पड़ता है थोड़ी सी उसकी भी बात करलें । ध्यान जब विषय मुक्त हो जाता है, तब चेतना निर्भार हो जाती है । वैसी स्थिति में आनन्द का अनुभव होता है । अर्थात सुख दुख विषय से और आनन्द निर्विषय से प्राप्त होता है । आनंद कभी भी किसी विषय से प्राप्त नहीं होता । वह जब भी होगा तो निर्विषय से ही । अतः यदि आपको आनन्द का अनुभव करना है तो चित्त को निर्विषय करें , क्योंकि आनंद सिर्फ उन्हें ही प्राप्त होता है जो ध्यान में स्थित हैं ।

आज इतना ही, धन्यवाद ।

Credit By:- Ram Kumar Singh (गया बिहार)

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